Sunday 11 August 2013

गम के तारों ने.....

गम के तारों ने बुन डाला, मेरे मन का ताना बाना

आंसू दर्द जलन पीडा से है मेरा सम्बन्ध पुराना


 

कल तक मैं सबसे बेह्तर था आज बुरा हूँ दुनिया से

अब टूटेगा तार सांस का क्या बहार है क्या वीराना

 

दर्द बढा जब हद से आगे, पहुँच गया हूँ मैखाने में

साकी ने ही मुझको जाना, मेरे जख्मों को पहचाना

 

आज अँधेरी मेरी दुनिया, दूर बहुत है दूर उजाले

मुझको सांसों की गाड़ी पर पड़ा लाश का बोझ उठाना

 

कितने दिन और कितनी रातें, सावन आँखों में बरसा है

अब मैं हंसना भूल गया हूँ, मैं बंजारा मैं बेगाना

रचित पुस्तक गजल वाटिकासे…….


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