Bhakti-Dhara (1)
मुस्कुराया सूर्य और खिल गई कली।
मुस्कुराया सूर्य और खिल गई कली।
हवा सुगंध ले गई महक गई गली।।
गंगा में जानकी जल कीड़ाएं करती हैं।
धारा में पाँव रखती हैं फिसलती गिरती हैं।
रघुवर पे भरके अँजलि में जल छिड़कती हैं।
अन्तर में स्नेह सलिल की तरंग उठती है।
भाव सिन्धु में तैर रही जनक लली।
मुस्कुराया सूर्य और खिल गई कली।
यमुना के तीर कान्हा बाँसुरी बजाए।
गोपियाँ संग पशु-पंछी दौड़े-दौड़े आए।
सामने न आए राधा छिपके मुस्कुराए।
लाज लागे कान्हा के करीब कैसे आए।
प्रेम के समुद्र नाव भाव की चली।
मुस्कुराया सूर्य और खिल गई कली।
आओ श्याम आके बाँसुरी मधुर बजाइए।
बरसा के प्रेम आप उग्र भावना मिटाइए।
पुरषोत्तम श्रीराम चले आओ फिर धरती पर।
केवट बन भर थाल निहारूँ मन की परती पर।
मिट जाए असुरत्तव ना मानवता हो छली।
मुस्कुराया सूर्य और खिल गई कली।
-रचना-राजीव मतवाला रचित पुस्तक ‘राधे राधे’ से
Bhakti-Dhara (2)
अकेला इस जहान में भव पार कर दो माँ|
अकेला इस जहान में भव पार कर दो माँ|
अज्ञानता हो दूर उर में ज्ञान भर दो माँ||
दुनिया के व्यंग बाण मन को छेड़ जाते है|
हृदय की कोमलांगता को छेद जाते हैं|
व्यथित तुम्हारा शिशु है आ प्यार कर दो माँ||
अज्ञानता हो दूर.....
रोशन तुम्हीं से चाँद सितारे हैं जहाँ|
मैं कब से ढूँढता फिरूँ तुझको कहाँ-कहाँ|
कर दूर अन्धकार पथ प्रकाश कर दो माँ||
अज्ञानता हो दूर.....
केवल नजर का फेर है जीवन ए खेल है|
दरिया का बहता पानी समुन्द्र से मेल है|
इस राही को अब कोई आधार दे दो माँ||
अज्ञानता हो दूर.....
-रचना-राजीव मतवाला
Bhakti-Dhara (3)
Bhakti-Dhara (6)
Bhakti-Dhara (3)
वेद न जानी शास्त्र न जानी |
हे माँ पूजा पाठ न जानी |
तूने शुम्भ निशुम्भ को मारा,
दीन दुखी कि तू महरानी |
वेद न जानी.....
माँ पर्वत की राह बता दे |
अपना अनुपम रूप दिखा दे |
खड़ी हूँ तेरे द्वारे माता,
अपने चरण में मुझे बसा ले |
धर्म न जानी कर्म न जानी,
बस तुम्हरी महिमा पहिचानी |
वेद न जानी.....
तुझे पूजती सारी रातें |
करनी तुझसे मुझको बातें |
माँ तुझसे ही आस लगाई,
और हर तरफ हैं प्रतिघातें |
यज्ञ न जानी पाठ न जानी,
जग में सिर्फ तुम्हें पहिचानी |
वेद न जानी.....
मेरी उलझन मिटा तो दे माँ |
आके मुझको बता तो दे माँ |
तेरे दर्शन को नैन प्यासे है,
आके मुखड़ा दिखा तो दे माँ |
पुणय न जानी पाप न जानी,
नुपुर की धुन गान न जानी |
वेद न जानी.....
-रचना-राजीव मतवाला
-रचना-राजीव मतवाला
Bhakti-Dhara (4)
बिन
प्यार के तुम्हारे मुझे कुछ न भाये रे |
पूजा
में मन लगाऊं मुझे तू दिखाए रे ||
बिन प्यार के तुम्हारे
दिख
रही संसार में माया तुम्हारे हाथ की |
तेरी
माया है निराली दिन हो चाहे रात की |
जिसका
न कोई उसपे दया तू दिखाए रे ||
बिन प्यार के तुम्हारे.....
सूर्य
की किरणों से मन को कर रही हर्षित है तू |
कर दया
की दृष्टि सुख को कर रही अर्पित है तू |
खुशी
की माँ सौगात सभी को लुटाए रे ||
बिन प्यार के तुम्हारे.....
संसार
में बस कागजी टुकड़े देखो बिक रहे |
भूल
करके प्यार हैं सपने हवाई दिख रहे |
नजरों
से जो गिरा उसे भी तू उठाये रे ||
बिन प्यार के तुम्हारे.....
-रचना-राजीव मतवाला
Bhakti-Dhara (5)
-रचना-राजीव मतवाला
Bhakti-Dhara (5)
होती मुराद पूरी
दरबार में जो आता |
जो सो रहा वो खोता
जो जागता वो पाता |
होती मुराद पूरी.....
भक्तों को माँ तुम्हारी ही
बस लगन लगी है |
उपवन में तेरे मइया
शीतल पवन बही है |
बीमार आये दर पे
तो ठीक होके जाता ||
होती मुराद पूरी.....
मैया तुम्हारे ही लिए
हैं महफिलें सजाईं |
कण कण में मेरी मैया
बस तू ही तू समाई |
आशीष पाके तेरा
तेरी भजन सुनाता |
होती मुराद पूरी.....
-रचना-राजीव मतवाला
Bhakti-Dhara (6)
मैया ने मुझपे बड़ा उपकार किया है |
मिटटी की काया में जान डाल दिया है |
मैया ने मुझपे.....
वह मन ही कैसा मन न माँ की चाह कर सके |
वह पग ही क्या जो माँ की राह न चल सके|
पीने को अमृत माँ ने उपहार दिया है |
मैया ने मुझपे.....
आँखों नए सपने दिन रात हूँ सजाता |
माँ देख तेरी मूरत हूँ मुस्कुराता गाता |
दिन रत मैंने माता का जाप किया है |
मैया ने मुझपे.....
है पाप पुणय की परिभाषा में भेद बताती |
जब भी पथ से भटका तो माता राह दिखाती |
जो आया शरण में उस पर ही उपकार किया है |
मैया ने मुझपे.....
रचना-राजीव मतवाला
Bhakti-Dhara (7)
Bhakti-Dhara (7)
जहाँ जन्म श्रीराम ने पाया मंदिर वहीं बनाएंगे|
जन्मभूमि श्रीराम की है ये महिमा उनकी गाएंगे|
जहाँ जन्म श्रीराम ने.....
मक्का और मदीना मेरा यही हमारा येरुसलम|
इसी की खातिर हम घयल हैं यही हमारा है मरहम|
कितने रण में खेत रहे वा कितनों का सर हुआ कलम|
कितने चले गए इस जग से कितनों का फिर हुआ जनम|
जन्मभूमि पर बनी हो मस्जिद कैसे हम सह पाएंगे|
जहाँ जन्म श्रीराम ने.....
मंदिर था या मस्जिद थी या बाबर ने इसको तोड़ा था|
जबसे पैदा हुए जानते हम भी हैं थोडा-थोड़ा सा|
नाना जी हमसे कहते थे जन्मभूमि श्रीराम की है ये|
मस्जिद बनी इसी के उपर कर्मभूमि श्रीराम की है ये|
अपने पूर्वजों की बातें कैसे हम झुठलाएँगे|
जहाँ जन्म श्रीराम ने.....
पूजा होती जहाँ वहाँ पर नहीं नमाज अदा की जाती|
श्रीराम की जन्मभूमि पर मस्जिद खड़ी नहीं की जाती|
अच्छा हो यदि सौंप सको तुम जन्मभूमि श्रीराम की|
जहां हो कीर्तन जहाँ आरती वह मस्जिद किस काम की|
मस्जिद तुम कहीं और बना लो मंदिर वहीँ बनाएंगे|
जहाँ जन्म श्रीराम ने.....
अगर बाबरी मस्जिद से ही तुमको है अब प्यार बहुत|
इसे हटाने की खातिर अब तुमको है इनकार बहुत|
तो मस्जिद है बहुत देश में और कहीं पर करो अजान|
अवधपुरी में पूजा होगी संत पढ़ेंगे वेद पुरान|
मक्का में अल्लाह अवध में राम नाम गुण गाएंगे|
जहाँ जन्म श्रीराम ने.....
रचना-राजीव मतवाला
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