Sunday 11 August 2013

मतवाला झूट पे बताओ.....


मतवाला झूट पे बताओ क्या लिखूं कविता|
जो है यथार्थ वास्तव में दीखता नहीं||
-०-
घंटो में चाहते थे मिनटों में बँट गए|
आँख है सलामत मगर दीखता नहीं||
-०-
अब अन्धकार से चिराग डरने लगा है|
सब स्वार्थ में परमार्थ कहीं दीखता नहीं||
-०-
दुनिया की ठोकरे मिलती रही हमें|
नैनों में लिए प्रेम कोई दीखता नहीं||
-०-
जिसको भी सहज सरल सरस देखने लगा|
वह बन गया कठोर तरल दीखता नहीं||
-०-
दिनरात लुट रहा हूँ लोग लूट रहे हैं|
बचने का कारगर उपाय दीखता नहीं||

राजीव मतवाला रचित पुस्तक:- गजल वाटिका ‘  से


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