वे पल...
वे दिन...
जो गए मुझसे छीन
जिनकी चाह थी लव को अनूदित
शान्ति की तलाश में भटकी थी
फिर थक कर टूट गया
वह अनंत मन...
गंगा और यमुना का
कल कल स्वर गुंजन
यादों की रिमझिम सा भीगा अनभीगा यौवन
जब व्यथा से भीगे मन ने कुछ कहना चाहा
जब प्यार फूट कर सर सर बहना चाहा
कैशौर्य की देहरी लांघकर
जैसे ही आई मेरी
जिंदगी में
तुम्हारे जाने कि
तय्यारी हो गई
अपने जानू से दूर
दूर बहुत दूर....
उस पार....
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