Saturday 10 August 2013

मैं अकेला हूँ...


मैं अकेला हूँ... 
तनहा हूँ.... 

सावन के हसीन पल में भी 
वो याद आ रहा है,
कभी जो मेरा अपना था|
रातों का तेरे संग जागना 
और ख्यालो में भागना 
आँखों की नीद भी छीनी थी 
जीने का ख्वाब भी छीना था|
अब जिंदगी यूँ ढलती है,
जैसे मुट्ठी से रेत फिसलती है|
दूर होते हुए भी साथ होकर,
ख्यालों में पास और पास होकर
फिर तुम बदल गई अचानक
मेरी जिंदगी बदलकर|
आज भी तुम दिखती हो आँखों में,
परछाई सी रहती हो सांसों में|
बहुत अजीब जुर्म-ए-महब्बत की सजा पाई है,
फागुन में ऐ परीतू बहुत याद आई है|
तू बहुत याद आई है.... 
तू बहुत याद आई है....
मैं अकेला हूँ... 
तनहा हूँ....


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