Sunday 11 August 2013

तुमको शीशागरी.....

तुमको शीशागरी नहीं आती|
यूँ कहो जिंदगी नहीं आती|


एक हवेली की ओट पड़ती है,
मेरे घर रौशनी नहीं आती|

अपने अश्कों को रायगा न करो,
पत्थरों में नमी नहीं आती|

हम हमेशा दुआएं देते है,
क्या करें दुश्मनी नहीं आती|

रोज मिलते हो कैसे मिलते हो,
फासले में कमी नहीं आती|

मैंने देखा था आइना एक दिन,
अब किस पे हंसी नहीं आती|
रचित पुस्तक ’ एक युद्ध शेष ‘ (ड्रामा) से

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