तुमको शीशागरी नहीं आती|
यूँ कहो जिंदगी नहीं आती|
एक हवेली की ओट पड़ती है,
मेरे घर रौशनी नहीं आती|
अपने अश्कों को रायगा न करो,
पत्थरों में नमी नहीं आती|
हम हमेशा दुआएं देते है,
क्या करें दुश्मनी नहीं आती|
रोज मिलते हो कैसे मिलते हो,
फासले में कमी नहीं आती|
मैंने देखा था आइना एक दिन,
अब किस पे हंसी नहीं आती|
रचित पुस्तक ’ एक युद्ध शेष ‘ (ड्रामा) से
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