Friday 9 August 2013

हाय क्या हो रहा…..

हाय क्या हो रहा स्वप्न के गाँव में
हम सफ़र कर रहे कागजी नाव में
हाय क्या हो रहा…..



रात ढलने लगी, हर बशर सो गया
आँख जलने लगी शोर कम हो गया
धुंध की जद में परछा इयाँ खो गई
सिस्कीया पी के सर्गोसियाँ सो गई
अब चलें कैसे छाले पड़े पांव में
हाय क्या हो रहा…..

 

टूट लहरों की अंगडा इयाँ खो गई
यू मधुर स्वर की शहनाइयाँ सो गई
ओठ पर ओठ रखकर कहीं खो गए
ओढ़ सपनों की चादर को हम सो गए
दिल पराजित हुआ एक ही दांव में
हाय क्या हो रहा…..

 

इश्क इजहार करने को जब जब गए
लफ्ज खुद अपनी आवाज में दब गए
सिर्फ आँखों ने आँखों की भाषा पढ़ी
दिल ने फिर खूबसूरत कहानी गढ़ी
प्यास अब तक न बुझी किसी ठावं में
हाय क्या हो रहा…..

 

आओ नीले गगन के तले हम चले
छावं में भी पले धुप में भी ढले
वो बिछर क्या गए स्वप्न ही मर गए
मन के उपवन में पतझड़ की ऋतू दे गए
कोकिला सुर दबा काग की कांव में
हाय क्या हो रहा…..

रचना:-राजीव मतवाला
प्रकाशित पुस्तक:-स्वप्न के गाँव से

No comments:

Post a Comment