आम छू आम छू काला बदाम छू
सारी समस्या का कर दे तमाम छू
आम छू आम छू…..
सारी समस्या का कर दे तमाम छू
आम छू आम छू…..
जीवन की नैया का कौन है खेवैय्या
जीवन में बहे कैसे ठंडी पुरवैया
मंजिल की चाहत में उपर को बढ़ना है
पगडंडी छोड़ तुझे राजपथ पे बढ़ना है
कैसी भी हालत हो हिमत न हार तू
आम छू आम छू…..
जीवन में बहे कैसे ठंडी पुरवैया
मंजिल की चाहत में उपर को बढ़ना है
पगडंडी छोड़ तुझे राजपथ पे बढ़ना है
कैसी भी हालत हो हिमत न हार तू
आम छू आम छू…..
जिंदगी तो चलने का नाम हुआ करती है
रुकना तो मौत की पहिचान हुआ करती है
असफलता सीढ़ी है पहली सफ़लता की
रफ्तार धीमी न बात है विफ़लता की
सत्येपथ की आँखों पर पट्टी न बांध तू
आम छू आम छू…..
रुकना तो मौत की पहिचान हुआ करती है
असफलता सीढ़ी है पहली सफ़लता की
रफ्तार धीमी न बात है विफ़लता की
सत्येपथ की आँखों पर पट्टी न बांध तू
आम छू आम छू…..
थोरी सी आग भी गर्मी दे सकती है
इच्छा प्रबल ही तो मंजिल मिल सकती है
चिंता की धरा को प्रबल बनाता जा
दुःख दर्द मंजर को हवा में उध्हता जा
दुखियों के पांव लगा कांटा निकाल तू
आम छू आम छू…..
इच्छा प्रबल ही तो मंजिल मिल सकती है
चिंता की धरा को प्रबल बनाता जा
दुःख दर्द मंजर को हवा में उध्हता जा
दुखियों के पांव लगा कांटा निकाल तू
आम छू आम छू…..
रचना:-राजीव मतवाला
प्रकाशित पुस्तक:-’स्वप्न के गाँव से’
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